आज छठ महापर्व के तृतीय दिवस पर गुरुग्राम के सूर्य देव मंदिर, न्यू पालम विहार, टी ब्लॉक फेज 2 स्थित छठ घाट पर श्रद्धा, भक्ति और सामूहिक उत्साह का मनोहारी दृश्य देखने को मिला। व्रतियों ने सूर्य देव को संध्या अर्घ्य अर्पित कर अपने तप, संयम और श्रद्धा का अनुपालन किया। इस अवसर पर छठ समिति द्वारा विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक श्रीमान सुंदरलाल जी का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने मंदिर पहुंचकर सूर्य भगवान का आशीर्वाद लिया। छठ समिति अध्यक्ष श्री सुनील कुशवाहा जी एवं समिति के सदस्यों ने उन्हें स्मृति चिन्ह एवं फटका पहनाकर सम्मानित किया।
अपने प्रेरक उद्बोधन में श्री सुंदरलाल जी ने कहा कि “छठ केवल पूजा नहीं, यह सूर्य, जल और प्रकृति के पवित्र संगम का उत्सव है। जब मनुष्य अपने तप और श्रद्धा से सूर्य को अर्घ्य देता है, तो वह अपने भीतर की ऊर्जा को भी जागृत करता है। यह पर्व जल, भूमि, अग्नि, वायु और आकाश — इन पंचमहाभूतों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।”
उन्होंने छठ महापर्व की पौराणिक एवं लोककथाओं का सार भी श्रद्धालुओं को सुनाया। उन्होंने बताया कि छठ का उल्लेख वेदों में ‘सूर्यषष्ठी व्रत’ के रूप में मिलता है। कुंती पुत्र कर्ण को सूर्यदेव की उपासना से दिव्य तेज प्राप्त हुआ था। वहीं रामायण काल में श्रीराम और माता सीता ने अयोध्या लौटने के पश्चात सूर्य देव की आराधना कर राज्य और समाज की सुख-समृद्धि की कामना की थी।
अपने उद्बोधन में उन्होंने राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी की कथा का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि संतान की प्राप्ति हेतु जब रानी मालिनी ने षष्ठी देवी की आराधना की, तो देवी के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ, परंतु जन्म के पश्चात शिशु की मृत्यु हो गई। रानी के दुःख से व्यथित होने पर देवी प्रकट हुईं और कहा — “यदि श्रद्धा और संयम से मेरा व्रत किया जाए तो मृत भी जीवन पा सकता है।” रानी ने श्रद्धा पूर्वक व्रत किया और उनका पुत्र पुनः जीवित हुआ। तभी से यह व्रत संतान की दीर्घायु, आरोग्य और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाने लगा।
श्री सुंदरलाल जी ने कहा कि यह कथा केवल चमत्कार की नहीं, बल्कि विश्वास, त्याग और अनुशासन की प्रतीक है। जब मनुष्य अपने भीतर श्रद्धा और संयम का भाव जगाता है, तभी प्रकृति उसकी सहचरी बनती है। इस प्रकार छठ पर्व न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामाजिक अनुशासन, पर्यावरणीय संतुलन और पारिवारिक एकता का सशक्त प्रतीक है।
अपने उद्बोधन के क्रम में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांच परिवर्तन संकल्पों — कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्व का भाव, नागरिक कर्तव्य और समरसता — का उल्लेख करते हुए कहा कि “इन पांच परिवर्तनों के माध्यम से समाज आत्मशक्ति से परिपूर्ण बन सकता है।
कुटुंब प्रबोधन से संस्कारों की जड़ें मजबूत होती हैं,
पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता से जीवन संतुलित होता है,
‘स्व का भाव’ हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है,
नागरिक कर्तव्य उत्तरदायित्व का बोध कराता है,
और समरसता हमें भेदभाव से ऊपर उठाकर राष्ट्रभाव में जोड़ती है।”
उन्होंने कहा कि छठ पर्व इन संकल्पों को जीवन में उतारने का उत्तम अवसर है। जब परिवार एकत्र होकर सूर्य को अर्घ्य देता है, तो वह केवल देवता की आराधना नहीं, बल्कि समाज में अनुशासन, सामूहिकता और कृतज्ञता का अभ्यास करता है।
अंत में श्री सुंदरलाल जी ने समिति के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि “गुरुग्राम जैसे महानगर में जब इस प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन निरंतर बढ़ रहे हैं, तो यह स्पष्ट संकेत है कि सनातन संस्कृति का नवजागरण हो रहा है। आने वाले वर्षों में ऐसे आयोजन समाज को और अधिक सशक्त, संगठित और संस्कारित करेंगे।”
इस अवसर पर विश्व हिंदू परिषद हरियाणा प्रांत के प्रचार-प्रसार प्रमुख श्री अनुराग कुलश्रेष्ठ जी, जिला धर्माचार्य सम्पर्क प्रमुख श्री योगेश मिश्रा जी, प्रखंड उपाध्यक्ष श्री त्रिलोकी जी, प्रखंड मंत्री श्री सरजू जी, श्री गोकुल जी तथा श्री अवध बिहारी जी सहित अनेक श्रद्धालु एवं कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

