बंगाल पूज्य संतों व स्वतंत्रता सेनानियों की पावन धरा है। यह वह राज्य है जहां का नाम सुनते ही, अनायास ही स्मरण हो आता था स्वामी रामकृष्ण परमहंस का, विश्व भर में अपने ज्ञान का लोहा मनवाने वाले युवा संत स्वामी विवेकानंद का, चैतन्य महाप्रभु का, भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद का, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का तो वहीं महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे माँ भारती के असंख्य वीर बलिदानियों का। अपने इतिहास में बंगाल की पावन धरा ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। उसने जहां 1905 के अपने मजहबी विभाजन की विभीषिका को झेला तो वहीं 1911 में उससे किनारे कर पुन: एकाकार भी हो गया। 1947 में इसने मजहबी आधार पर विभाजन की विभीषिका को झेलते समय शायद सोचा होगा कि अब इस मजहबी समस्या का अंत हो जाएगा किन्तु उसे वह दंश आज तक झेलना पड़ रहा है।
पश्चिमी बंगाल के अनेक हिस्सों में आज भी ना हिंदुओं के घर सुरक्षित हैं ना मंदिर, ना बहिन-बेटियाँ सुरक्षित हैं, ना हिन्दू आस्था केंद्र। यहाँ तक कि वहाँ बसे हिंदुओं को अपने त्योहारों को मनाने के लिए भी बार बार माननीय उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ता है। न्यायालय के आदेश के बाद भी चाहे श्रीराम नवमी हो या श्री हनुमान जन्मोत्सव, सरस्वती पूजा हो या वहाँ की प्रसिद्ध माँ दुर्गा पूजा, हमारी शोभा यात्राओं पर जिहादी व हिन्दू द्रोही हमले करते हैं और वहाँ का स्थानीय शासन-प्रशासन मूक दर्शक बन तमाशा देखता रहता है! गरीब, मजदूर व महिलाएं एक ओर अपनी आर्थिक स्थिति के कारण परेशान हैं तो वहीं शासकीय व राजनैतिक दमन का भी शिकार हैं।
हाल ही में घटी संदेशखाली की मर्मस्पर्शी महिला उत्पीड़न व सत्ताधीशों द्वारा महिला शोषण की घटना ने तो सम्पूर्ण विश्व में बंगाल को बदनाम किया ही है, बंगाल सफारी में लाए गए कुछ जंगली जानवरों के नामों के माध्यम से भी हिन्दू आस्था पर जो गहरी चोट की गई, वह भी किसी से छुपी नहीं है। राज्य सरकार द्वारा बारम्बार अपने पापों को छुपाने के प्रयासों के बावजूद, उसका हिन्दू द्रोही चरित्र निखर कर बाहर आ रहा है। अब हिन्दू समाज ने भी कमर कस ली है कि सरकार चाहे कितना भी झूठ बोले, दमन करे, हिन्दू आस्था का उपहास उड़ाए, हम हार नहीं मानेंगे। सरकार से ना सही, हर बार की तरह हम माननीय उच्च न्यायालय से न्याय प्राप्त कर करोड़ों रामभक्तों की आस्था की रक्षा करेंगे और माता सीता के नाम को कलंकित करने वालों को सबक सिखाएंगे।
मामला यह है कि 8 फरवरी को त्रिपुरा स्थित सेपाहिजला जूलोजीकल पार्क से एक शेर और एक शेरनी के साथ कुछ अन्य वन्य प्राणियों को सिलीगुड़ी स्थित बंगाल सफारी में लाया गया। बंगाल पहुंचे त्रिपुरा सरकार के दस्तावेजों में इन शेर शेरनी के नाम L-1 व L-2 थे। किन्तु, 13 तारीख को स्थानीय मीडिया में छपी व सोशल मीडिया में चली खबरों में उस शेर का नाम “अकबर” और शेरनी का नाम ‘सीता’ रखा गया बताया, जो एक ही बाड़े में रह कर प्रजनन करेंगे। ‘सीता को मांस खिलाया जाएगा’, ‘अकबर के साथ रहेगी सीता’ इत्यादि अनेक अनर्गल बातों से वहाँ के हिन्दू समाज में और गहरा रोष व्याप्त हो गया। विश्व हिन्दू परिषद उत्तर-बंग प्रांत के मंत्री श्री लक्ष्मण बंसल तथा संगठन मंत्री श्री अनूप मण्डल के साथ हिन्दू समाज ने एक ज्ञापन के साथ वहाँ के वन विभाग के निदेशक से भेंट कर उन्हें उन बेहूदगी भरी खबरों से अवगत करा कर माता सीता के अपमान पर विराम लगाने की मांग की गई। किन्तु उस अधिकारी ने ना तो खबर की पुष्टि की और ना ही उसका सार्वजनिक खंडन ही किया।
हिन्दू समाज चाहता था कि आखिर ये किस दुष्ट दिमाग की उपज है, इसकी जांच तो होनी ही चाहिए। साथ ही, इनके नाम भी अविलंब बदल कर संबंधित अधिकारियों को हिन्दू जन-भावनाओं पर चोट करने के लिए माफी भी माँगनी चाहिए। आक्रोषित हिन्दू समाज ने विहिप सिलीगुड़ी के नेतृत्व में वहाँ प्रदर्शन भी किया किन्तु शासन-प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। उधर बंगाल सरकार के एक दस्तावेज में उनके नाम ‘अकबर’ व ‘सीता’ छपे दिखे तो विहिप उत्तर-बंग प्रांत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच के सम्मुख अपनी याचिका दाखिल कर दी। 16 फरवरी दायर इस याचिका में राज्य के गृह सचिव, राज्य वन्यजीव प्राधिकरण तथा सिलीगुड़ी स्थित नॉर्थ बंगाल वाइल्ड एनीमल पार्क के निदेशक को पार्टी बना कर, एडवोकेट शुभांकर दत्ता के माध्यम से, राज्य सरकार से मांग की गई कि आखिर देवी माता सीता के नाम के प्रयोग को अविलंब रोका जाए तथा षड्यन्त्रकारी हिन्दू द्रोही के विरुद्ध कार्यवाही की जाए। माननीय उच्च न्यायालय मामले की सुनवाई 20 फरवरी को करेगा।
इस बीच खबर है कि इस विवाद के कारण विहिप के विरोध प्रदर्शन व कानूनी कार्यवाही के बाद ना सिर्फ सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी के निदेशक कमल सरकार को हटा कर वहां बांकुड़ा दक्षिण डिवीजन के डीएफओ इ. विजय कुमार को लगाया गया है अपितु राज्य के वन मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक को भी इस पद से बर्खास्त कर दिया गया है। किंतु अभी तक ना तो ममता सरकार ने हिंदू समाज से माफी मांगी है और ना ही शेर-शेरनी के नाम को बदलने की कोई घोषणा ही की है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। स्थानीय जनता ही नहीं सम्पूर्ण भारत अब यह मांग कर रहा है कि संदेशखाली के यौनाचारी व हिंसाचारी शाहजहां और जंगली अकबर के पैरोकारों को ममता दीदी अब और ना बचाएं तो अच्छा है अन्यथा इसके परिणाम बड़े गंभीर होंगे। अब बंगाल की जनता को यह पार्टी तृणमूल कम और TMC (Tainted & Muslim Congress) अधिक लगने लगी है। हिंदू समाज का संकल्प है कि वह मां सीता का यह अपमान कदापि बर्दाश्त नहीं करेगा।
विचारणीय बिन्दु यह है कि वहाँ के भोले-भाले व शांतिप्रिय हिन्दू समाज को कभी अपने त्यौहारों, कभी धार्मिक मान्यताओं, कभी बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं तो, कभी महिला स्वाभिमान की रक्षार्थ, बारम्बार आखिर उच्च न्यायालय की शरण में क्यों जाना पड़ता है? दूसरा, न्यायालय से बार बार मुंह की खाने के बाद भी तृणमूल को तृण भर भी शर्म क्यों नहीं आती? बंगाल के साथ सम्पूर्ण विश्व के हिन्दू समाज का संकल्प है कि स्वामी रामकृष्ण, विवेकानंद, प्रभुपाद व चैतन्य महाप्रभु की चेतना के बंगाल को अब जिहादियों, अतिवादियों तथा हिंदू द्रोहियों की हवस का शिकार नहीं होने देंगे। छुद्र राजनैतिक लाभ के लिए बंगाल को बर्बाद नहीं होने देंगे।
* लेखक विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं *